और मेरी मौत के बाद.. रंडियाँ मेरी लाश से लिपट कर नाचें, मैं चाहता हूँ ऐसा एक जश्न हो.. मेरे जनाज़े पर आये घड़ियाल, बस दावत खाने में मग्न हो.. न ज़िक्र हो मेरे जीवन का, न बात हो उसके सूनेपन की .. ढोल नगाड़े ताशों में फिर दब जाये आवाज़ मेरे मन की .. नज़्म बन कर सिमट जाऊं, मैं फिर किसी की ग़ज़लों में, विरह गीत की थाप सा मैं, पाया जाऊं फिर तबलों में.. अघोरियों की काली विद्यायें राख से मेरी सिद्ध हो जाएँ मुझको जो दिखते थे ये मोर, अब तो ये सारे गिद्ध हो जाएँ.. ©Gireesh Jat #Maut #aftermydeath