बचपन (ग़ज़ल) आया था एक हसीन पड़ाव बचपन का, बहुत जिया उसे हमने, पर वक़्त के साथ वह बचपन खो गया। ना जिम्मेदारी का बोझ, ना भविष्य की कोई चिंता, जब रहती थी हमारी पुतलियाँ भी सफेद,लेकिन आज वह आँखे कहीं खो गई। रहते थे तब हम अपनी मस्ती में ही, स्कूल जाना खेलना लड़ना और झगड़ना, लेकिन आज वह दोस्त कहीं खो गए। बचपन में भी जहांँ हमारी स्कूल थी,आज भी वही है, लेकिन आज मेरे बचपन की परी कहीं खो गई। रखी है आज भी मैंने संभाल के बचपन की वह चीजें, वो चीज़े नहीं यादें है मेरी पर बढ़ती उम्र के साथ वो वक़्त कहीं खो गया। बारिश तब भी आती थी, आज भी आती है, लेकिन आज बारिश के साथ मेरे बचपन के काग़ज की कश्ती कहीं खो गई। -Nitesh Prajapati रचना क्रमांक :-2 #kkpc27 #kkप्रीमियम #कोराकाग़ज़प्रीमियम #प्रीमियमग़ज़ल #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़