सुना है वो शक़्स रातों दिन बात करते हैं न जाने क्या-क्या और कैसी बात करते हैं हँसतें हैं ऊँची हसीं खिल-खिलाते चेहरों से फिर क्या मालूम मिलने पे वो कैसी बात करते हैं सिमटा था मुश्किल से, बिखेर गए हमदम मेरे जादूगर हैं दिलजानी जादुई बात करते हैं जिस्म का क्या है, कच्चा है, बस रूह पे कब्ज़ा न हो मेरी सोचता हूँ क्या उस शक़्स से ऐसी बात करते हैं चीखतें हैं कई टुकड़े मेरे चुपके-चुपके कोने में सामने आ कर उसी शक़्स के धीरे बात करते हैं रातें ही तो क़ातिल हैं , उस सपने की, इस सपने की क्यूं ये काले, घन्हे अंधेरे ख़ूनी बात करते हैं मेरी आँखें भीगीं हैं, सोजीं हैं , सोई नहीं और तो सपने खुदसे मेरे रूखी बात करते हैं तुम हो न पास मेरे,या नहीं, या हो क्या महरम लोग इश्क़ में न जाने क्यूँ ऐसी बात करते हैं बेक़रारी अच्छी है , दुख-दर्द के क्या कहने अरे आज तो हम रोये नहीं, चलो रो के बात करते हैं रिमल