सागर की गहराई से हिमालय की ऊंचाई तक जाना है हमको वहां जहा पहुंचा नहीं कोई अबतक क्यूं पिंजरे में कैद करू खुद को क्यूं दुनिया से मै आस करूं हूं आज़ाद परिंदा धरती का क्यूं सबकी बातो पे विश्वास करूं जब तक सांस चलेगी तब तक खुद को मै संभालूंगा दुनिया जिससे है अनजान कुछ ऐसा ढूंढ़ निकालूंगा अपने मन कि गहराई से विचारों की ऊंचाई तक जाना है हमको वहां जहा पहुंचा नहीं कोई अबतक #जहा पहुंचा नहीं कोई अबतक