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कितना कुछ तो बिसर गया है, अब जो जाता है उसे जाने द

कितना कुछ तो बिसर गया है,
अब जो जाता है उसे जाने दो,
ठहर कहीं कोई राह न ताको
ख़ुद को ख़ुद संग अब आने दो।

कदम जकड़े जो मन का भंवर
बातों में ख़ुद को न बहलाने दो,
आँचल की गाँठ में बाँधे हैं जो
स्वयं नया स्वप्न नीड़ बनाने दो।

बादल–चिड़ियां भानु और शशि,
कबसे इन सबसे बातें नहीं की?
एक बार मिलो उसी खिड़की पे,
उन्हें दोस्त अपना फिर पाने दो।

जो चली चली कभी थमी रुकी,
सुनो! स्पंदन को नूपुर संग गाने दो,
मिलो – खिलो और लिखो–पढ़ो
कि जादू से चंदा–चकोर मुस्काने दो।

©अबोध_मन//फरीदा कितना कुछ तो बिसर गया है,
अब जो जाता है उसे जाने दो,
ठहर कहीं कोई राह न ताको
ख़ुद को ख़ुद संग अब आने दो।

कदम जकड़े जो मन का भंवर
बातों में ख़ुद को न बहलाने दो,
आँचल की गाँठ में बाँधे हैं जो
कितना कुछ तो बिसर गया है,
अब जो जाता है उसे जाने दो,
ठहर कहीं कोई राह न ताको
ख़ुद को ख़ुद संग अब आने दो।

कदम जकड़े जो मन का भंवर
बातों में ख़ुद को न बहलाने दो,
आँचल की गाँठ में बाँधे हैं जो
स्वयं नया स्वप्न नीड़ बनाने दो।

बादल–चिड़ियां भानु और शशि,
कबसे इन सबसे बातें नहीं की?
एक बार मिलो उसी खिड़की पे,
उन्हें दोस्त अपना फिर पाने दो।

जो चली चली कभी थमी रुकी,
सुनो! स्पंदन को नूपुर संग गाने दो,
मिलो – खिलो और लिखो–पढ़ो
कि जादू से चंदा–चकोर मुस्काने दो।

©अबोध_मन//फरीदा कितना कुछ तो बिसर गया है,
अब जो जाता है उसे जाने दो,
ठहर कहीं कोई राह न ताको
ख़ुद को ख़ुद संग अब आने दो।

कदम जकड़े जो मन का भंवर
बातों में ख़ुद को न बहलाने दो,
आँचल की गाँठ में बाँधे हैं जो