गवारा ही नहीं ये बादी-ए-रंगी-ए-गुलजार हमें जबकि पलकों पर रखती है गुल-ए-बहार हमें बोशे जाम के और भी दिलचस्प लगतें हैं शव-ओ-रोज होता जब कौई इन्तजार हमें दहका हुआ है जिस शोले से अब्र का दामन उस बर्क से रह्ती है दरकिनार हमें अंकित शर्मा #Gazals#shayri#ankitsharma