पिता और परमपिता एक पिता घर का पालक और एक पिता है विधाता; दोनों का आश्रय ही तो जीवन को सुखद बनाता।। परमपिता की कृपा से मिलता जीवन का वरदान है; और पिता के अंश से उपजे सबके तन मन प्राण है। जल वायु फल फूल को सृष्टिकर्ता जग में भरता है; रोटी कपड़े और मकान की पिता व्यवस्था करता है। एक बैठकर अंतः करण में सत्य राह दिखलाता हैं; और दूजा अनुभव देके बाधा से लड़ना सिखाता है। उचित न्याय से ईश्वर गुण कर्मों के फल को देता है; पर जीवन भर पिता तेरे स्वप्न की नैया खेता है। दोनों की आज्ञापालन कर यश वैभव का सृजन करो; दिल से उपकारों को मानो कर्तव्यों से भजन करो।।