बादल (अनुशीर्षक में पढ़ें) बादल एक सैलाब को ख़ुद के अंदर समेटते रहे बादल जब सह ना सके तो आख़िर बरस ही गए बादल सब्र की इन्तहा उनकी हो गई थी पार अपने जज्बातों को कब तक छुपाते बादल