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चाय और कचोरी चाय छीन ले भूख तन की, नींद रहे ना किस

चाय और कचोरी
चाय छीन ले भूख तन की, नींद रहे ना किसी के वश में,
कचोरी जब मुख में जाएँ, मन लगे ना किसी का घर में।

घर की बनी रोटी ना भाये, सब्जी में केवल नमक बताएँ,
तन के बन शत्रु, अपनी लंका अपने हाथों से ही जलाएँ।

भूलने लगते सब संकेत तन के, दवाइयाें पर धन लूटाते,
भूल करे खुद, ओरों का दिन का चैन, रातों की नींद उड़ाते।

पाचन शक्ति की बैरी बन चाय, काटने लगती जीवन की डोरी।
चाय, कचोरी के जाल में फँसकर, तन को ना बनने दे बोरी।।

पंचतत्वों को स्वच्छ रखे और तन पर ना चढ़ने दे मैली रेत,
वक्त से पहले पाने के मद में, बंजर ना बनने दे अपने खेत।

आवश्यकता से अधिक संग्रह लालच के सब खोले द्वार,
राहों को मंजिल समझ, समझ ना पाएँ जीवन का सार।

अति करे विनाश मति का, मति ना करने दे सुन्दर काम,
एक स्पर्श ना छोड़े कुछ भी, मिटा के रख दे सुन्दर नाम।

चाय पीलाओ ना भूखे तन को, मन की कसके रखो लगाम,
तन से जरा काज कराओ, कचोरी से ना रोज करो सलाम।

प्रकृति ने अमृत दिया तो, विष का पान कराया हर कश में,
चौराहे की चाल देखकर, विष को ना आने दे अपने तन में। चाय और कचोरी
चाय छीन ले भूख तन की, नींद रहे ना किसी के वश में,
कचोरी जब मुख में जाएँ, मन लगे ना किसी का घर में।

घर की बनी रोटी ना भाये, सब्जी में केवल नमक बताएँ,
तन के बन शत्रु, अपनी लंका अपने हाथों से ही जलाएँ।

भूलने लगते सब संकेत तन के, दवाइयाें पर धन लूटाते,
चाय और कचोरी
चाय छीन ले भूख तन की, नींद रहे ना किसी के वश में,
कचोरी जब मुख में जाएँ, मन लगे ना किसी का घर में।

घर की बनी रोटी ना भाये, सब्जी में केवल नमक बताएँ,
तन के बन शत्रु, अपनी लंका अपने हाथों से ही जलाएँ।

भूलने लगते सब संकेत तन के, दवाइयाें पर धन लूटाते,
भूल करे खुद, ओरों का दिन का चैन, रातों की नींद उड़ाते।

पाचन शक्ति की बैरी बन चाय, काटने लगती जीवन की डोरी।
चाय, कचोरी के जाल में फँसकर, तन को ना बनने दे बोरी।।

पंचतत्वों को स्वच्छ रखे और तन पर ना चढ़ने दे मैली रेत,
वक्त से पहले पाने के मद में, बंजर ना बनने दे अपने खेत।

आवश्यकता से अधिक संग्रह लालच के सब खोले द्वार,
राहों को मंजिल समझ, समझ ना पाएँ जीवन का सार।

अति करे विनाश मति का, मति ना करने दे सुन्दर काम,
एक स्पर्श ना छोड़े कुछ भी, मिटा के रख दे सुन्दर नाम।

चाय पीलाओ ना भूखे तन को, मन की कसके रखो लगाम,
तन से जरा काज कराओ, कचोरी से ना रोज करो सलाम।

प्रकृति ने अमृत दिया तो, विष का पान कराया हर कश में,
चौराहे की चाल देखकर, विष को ना आने दे अपने तन में। चाय और कचोरी
चाय छीन ले भूख तन की, नींद रहे ना किसी के वश में,
कचोरी जब मुख में जाएँ, मन लगे ना किसी का घर में।

घर की बनी रोटी ना भाये, सब्जी में केवल नमक बताएँ,
तन के बन शत्रु, अपनी लंका अपने हाथों से ही जलाएँ।

भूलने लगते सब संकेत तन के, दवाइयाें पर धन लूटाते,
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R.S. Meena

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