ए खुदा न जाने क्यूं, रुख में वो अपने रुख़सत को बिठाएं हैँ जो कहतें थे कभी,तशरीफ़ में हम आपके पलकें बिछाएं हैँ मुर्शिद से गर्दिश का सफर है अब ये, जिसे कभी कहते थे, पाकीज़ा ताल्लुक की हवाएं हैँ। ©virutha sahaj ए खुदा