जब हमारा दिल और दिमाग, दोनों थक जाता है, देखता हूँ बसंत बहार, पर खिजां नज़र आता है। तब मेरे अंतर्रात्मा में, एक उम्मीद सी जगती है, तेरा ये मासूम चेहरा, खुशियों के फूल खिलाता है। विधाता भी तुझे देखकर, अपना दिल हारा होगा, अपने हाथों से गढ़कर, तेरे रूप को संवारा होगा। चाँद सितारे ग्रह नक्षत्र सारे भी, मायूस हुए होंगे, जब सौंदर्य की देवी को, जमीं पर उतारा होगा। एक बार कैप्शन अवश्य पढ़ें. #kavyamela #competitionwriting साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता (प्रतियोगिता-4)