पैसा...पैसा...पैसा आखिर कैसा अनमोल शब्द है, यह पैसा कैसा उम्दा कागज है, यह पैसा जो अमीरों के लिए कारोबार का काम करता है यह पैसा तो कहीं जरूरतमंद के लिए एक लाचारी का आलम है यह पैसा पैसा...पैसा...पैसा क्यों..?आज अपनों के ही बीच दरार है, यह पैसा तो कहीं जरूरतमंद के लिए रुह की प्यास बन बैठी है यह पैसा आखिर क्यों..?फिर भी सबकी निगाहों पर बसता है यह पैसा पैसा...पैसा...पैसा आखिर कैसा अनोखा इबादत है, यह पैसा लोग जितनी चाहे क्यों..?ना कमाले फिर भी हर एक की जुबां पें नहीं है "पैसा" का जाप क्यों..?है, यह पैसा पैसा...पैसा...पैसा क्यों..?दूरियां ना चाह कर भी बढ़ाता है, यह पैसा क्यों..?रब से भी धीरे-धीरे नाता तोड़ाता है, यह पैसा फिर भी न जाने क्यों..?लोग अपनी रूह को जलाकर भी जामाता है, ये पैसा ©R...Khan #पैसा#पैसा#पैसा #paper