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(तरह -तरह की औरतें ) देखो जरा उनको , कैसे सकुचाती

(तरह -तरह की औरतें )
देखो जरा उनको , कैसे सकुचाती घूंघट  की आड़ लिए 
दिव्य तेजनुमा झलक फिर भी 
खिलखिलाती पनघट पर गगरी भरती 
मानो स्फूर्ति सी दौड़ती हुई जाती है वो औरतें 
ना कोई घमंड किसी नये दौर का और 
ना ही शिकायत किसी से 
फिर भी मस्त सी खोयी हुई जा रहीं है वे औरतें 
तो कुछ बदलते जमाने की आबरू और रिवाज को 
ख़ुद मे ढालती हुई  , एक स्वच्छन्द पक्षी की तरह 
विचरण करती हुई , बस चलती और चलती ही जा रही है वो औरतें 
दिल से मदमस्त और कुछ नवीनतम आशाओं और सपनों को 
पुरा करने की चाह मे न जाने कितनी संवरती जाती है वो औरतें 
नारी एक रूप अनेक , ऐसी ही भाँति -2की छवियों को 
जीवंत दर्शा रही है वो औरतें 
शिक्षक ,अभियंता ,चिकित्सक ,लेखिका , अभिनय हर नवीन  विधा मे 
ख़ुद को श्रेठ साबित करती हुई ,दिखाई दे रही है वो औरतें 
सच ही तो कहा गया है ममत्व और प्रेम की परिभाषा को 
अनूठा साज बनाती है हर तरह की औरतें । 
#स्वातिकीकलमसे । #mahilasamantawanadiwas
#swatikiqalumse  Dr Ashish Vats rounak kumar Satyaprem Upadhyay Hemant Soni(Musafir)
(तरह -तरह की औरतें )
देखो जरा उनको , कैसे सकुचाती घूंघट  की आड़ लिए 
दिव्य तेजनुमा झलक फिर भी 
खिलखिलाती पनघट पर गगरी भरती 
मानो स्फूर्ति सी दौड़ती हुई जाती है वो औरतें 
ना कोई घमंड किसी नये दौर का और 
ना ही शिकायत किसी से 
फिर भी मस्त सी खोयी हुई जा रहीं है वे औरतें 
तो कुछ बदलते जमाने की आबरू और रिवाज को 
ख़ुद मे ढालती हुई  , एक स्वच्छन्द पक्षी की तरह 
विचरण करती हुई , बस चलती और चलती ही जा रही है वो औरतें 
दिल से मदमस्त और कुछ नवीनतम आशाओं और सपनों को 
पुरा करने की चाह मे न जाने कितनी संवरती जाती है वो औरतें 
नारी एक रूप अनेक , ऐसी ही भाँति -2की छवियों को 
जीवंत दर्शा रही है वो औरतें 
शिक्षक ,अभियंता ,चिकित्सक ,लेखिका , अभिनय हर नवीन  विधा मे 
ख़ुद को श्रेठ साबित करती हुई ,दिखाई दे रही है वो औरतें 
सच ही तो कहा गया है ममत्व और प्रेम की परिभाषा को 
अनूठा साज बनाती है हर तरह की औरतें । 
#स्वातिकीकलमसे । #mahilasamantawanadiwas
#swatikiqalumse  Dr Ashish Vats rounak kumar Satyaprem Upadhyay Hemant Soni(Musafir)
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