गाँव मेरा मुझे बहुत याद आता है वो बसंत बहार वो सावन का महीना रूत सुहानी सी वो सौंधी सौंधी खुसबू मिट्टी की वो प्यार अपनों का वो साथ यारों का कहाँ से लाऊँ यहाँ शहर के इस महौल में जहाँ फुर्सत ही नहीं खुद को खुद के लिए वहाँ दोस्त कहाँ से लाऊँ साथ दो पल बिताने के लिए वो गलियां जो गुलज़ार थी हमारी शरारतों से वो आंगन जहाँ लेखा करते थे वो गाँव जहाँ हम शान से जिया करते थे कहाँ से लाऊँ यहाँ इस शहर में जहाँ नफ़रत ही नफ़रत है लोगों में वहाँ प्यार कहाँ से लाऊँ अपनों सा वो गाँव मेरा मुझे बहुत याद आता है जहाँ प्यार पनपता है हर घर में ©Ankur Mishra #गाँव_मेरा_मुझे_बहुत_याद_आता_है #worldpostday