अलसाई साँझ युद्ध के बाद ये अलसाई साँझ, लिपटी हुई है निराशा से, फटी हुई है हताशा से, घिरी है मारक विमानों से, डरी है घातक निशानों से, सनी है हांपती दीवारों से, डरी है कांपती मीनारों से, भरी है धूल के गुबारो से, धधकते हुए अंगारो से, कुबुद्धिजिवीयों के विचारों से। युद्ध के बाद इस अलसाई साँझ में, व्याप्त है देह के टुकड़े, ध्वस्त है नेह के मुखड़े, कौन परास्त हुआ, पता नहीं पर निसंदेह आज, कई सूरज उजड़े । साँझ अलसाई इसलिए भी है कि- अब भी कोई औजार बना रहा है, कोई गर्म बाजार बना रहा है, कौन समूल नष्ट होगा, पता नहीं पर मानव आज, गलत विचार बना रहा है । युद्ध के बाद अलासाई साँझ, प्रतिक्षा कर रही है... अपनी वो मोहक साँझ देखने को। कवि आनंद दाधीच,भारत ©Anand Dadhich #अलसाई_साँझ #युद्ध #war #poemsonwar #kaviananddadhich #poetananddadhich #SAD