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सूरज पहले शीतल था धरती गई दूर बिछड़क

सूरज    पहले   शीतल    था
धरती  गई    दूर   बिछड़कर
गुस्सा     वो     होता     कैसे
मारा खुद को उसने जलकर

धरती    से    चंदा   बिछड़ा
रोया   वो   छुप  छुप   कर
खुद  को  उसने शीत किया
धरती  से   चिपका  डटकर

फिर  अंबर  ने  भू  को छोड़ा
भू मिलती अब पर्वत बनकर
अब  मिलते और बिछड़ते है
बारिश  होती  है  रह रह कर

नदियों  ने  सारे  पर्वत  छोड़े
दौड़ी  वो  कलकल  कर कर
पर्वत नदियों में मिल सा गया
खारा  है  सागर  यह सहकर


¢ डा• रामवीर गंगवार












.

©Ramveer Gangwar #ramveergangwar #Love 

#Sea
सूरज    पहले   शीतल    था
धरती  गई    दूर   बिछड़कर
गुस्सा     वो     होता     कैसे
मारा खुद को उसने जलकर

धरती    से    चंदा   बिछड़ा
रोया   वो   छुप  छुप   कर
खुद  को  उसने शीत किया
धरती  से   चिपका  डटकर

फिर  अंबर  ने  भू  को छोड़ा
भू मिलती अब पर्वत बनकर
अब  मिलते और बिछड़ते है
बारिश  होती  है  रह रह कर

नदियों  ने  सारे  पर्वत  छोड़े
दौड़ी  वो  कलकल  कर कर
पर्वत नदियों में मिल सा गया
खारा  है  सागर  यह सहकर


¢ डा• रामवीर गंगवार












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©Ramveer Gangwar #ramveergangwar #Love 

#Sea