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झील के उस पार सुबह होती है पर्वत कांपता है और कांप

झील के उस पार
सुबह होती है
पर्वत कांपता है
और कांपती है
मन मे उठी आकांक्षाएं
कांपती लौ की तरह
न जाने कब बुझ जाए
और फिर घना अंधेरा छा जाए ।।।। कांपती लौ
झील के उस पार
सुबह होती है
पर्वत कांपता है
और कांपती है
मन मे उठी आकांक्षाएं
कांपती लौ की तरह
न जाने कब बुझ जाए
और फिर घना अंधेरा छा जाए ।।।। कांपती लौ