झील के उस पार सुबह होती है पर्वत कांपता है और कांपती है मन मे उठी आकांक्षाएं कांपती लौ की तरह न जाने कब बुझ जाए और फिर घना अंधेरा छा जाए ।।।। कांपती लौ