करते रहे पामिली-ए-एहकाम सुब्ह-ओ-शाम तुम धाते रहे ज़ुल्म-ओ-सितम सरे आम तुम तुम ज़मीं पर बड़े सरकश होगएं थे जुर्म व गुन्हा के मरकज़ होगएं थे ज़रा अपने आमाल का मज़ा चखो अब अपनी खताओ की सझा भुगतो अब पर में काहार हूं तो रहीम भी हूं गफ्फार भी हूं दो आंसू बहा कर तो देखो बख्शीश को तयार भी हूं इस परेशानी में कोई हल नज़र नहीं आता...? हैरत है, तुम्हें अब भी मेरा घर नज़र नहीं आता...! ठोकर लगी है तो संभल जाओ अब समझदार हो इब्रत लो सुधर जाओ अब में नाराज़ हूं, पर दरमियां अभी बैर नहीं हुई इस्तिग़फ़ार कर मनालो मुझे के अभी देर नहीं हुई दर-ए-तौबा बन्द होने की घड़ी नहीं आई लौट आओ के क़यामत, अभी नहीं आई (उमर शेख) #वबा #हिस्सा_दूव्वाम #Waba #Virus #Hissa_Duwwam #Part_Two #Nojoto