पता नहीं क्या है क्या चल रहा है मन मे कुछ समझ नहीं आरहा, सपने टूटने का डर है या किसी अपने को खोने का डर है पाता नहीं किन उलझनों में उलझी हूं , कुछ बेचैनी सी लग रही है, अंदर ही अंदर तूफ़ान उठ रहा प्रश्नों से घिरी हूं,इन प्रश्नों का कोई हल नही नज़र आ रहा रो भी नहीं पा रही ना ही हस रही हु बस ख़ामोशी से पड़ी हूं खुद को समझने की कोशिश में लगी हूं शायद .....मेरी ज़िंदगी की उलझने सुलझ जाए।। #जिंदगी_का_सच #जिंदगी_की_राह #खामोशी_का_शोर