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क्या आपको पता है? कि किवाड़ की जो जोड़ी होती है,उस

क्या आपको पता है?
कि किवाड़ की जो जोड़ी होती है,उसका एक पल्ला पुरुष और,
 दूसरा पल्ला स्त्री होती है।ये घर की चौखट से जुड़े-जड़े रहते हैं।
हर आगत के स्वागत में खड़े रहते हैं।।खुद को ये घर का सदस्य मानते हैं।
भीतर बाहर के हर रहस्य जानते हैं।।एक रात उनके बीच था संवाद।
चोरों को लाख-लाख धन्यवाद।।वर्ना घर के लोग हमारी,
एक भी चलने नहीं देते।हम रात को आपस में मिल तो जाते हैं,
हमें ये मिलने भी नहीं देते।।घर की चौखट से साथ हम जुड़े हैं,
अगर जुड़े जड़े नहीं होते।तो किसी दिन तेज आंधी-तूफान आता, 
तो तुम कहीं पड़ी होतीं,हम कहीं और पड़े होते।।
चौखट से जो भी एकबार उखड़ा है।वो वापस कभी भी नहीं जुड़ा है।।
इस घर में यह जो झरोखे,और खिड़कियाँ हैं। यह सब हमारे लड़के,
और लड़कियाँ हैं।।तब ही तो,इन्हें बिल्कुल खुला छोड़ देते हैं।
पूरे घर में जीवन रचा बसा रहे,इसलिये ये आती जाती हवा को,
खेल ही खेल में,घर की तरफ मोड़ देते हैं।।
हम घर की सच्चाई छिपाते हैं।घर की शोभा को बढ़ाते हैं।।
रहे भले कुछ भी खास नहीं,पर उससे ज्यादा बतलाते हैं।
इसीलिये घर में जब भी,कोई शुभ काम होता है।
सब से पहले हमीं को,रँगवाते पुतवाते हैं।।
पहले नहीं थी,डोर बेल बजाने की प्रवृति।
हमने जीवित रखा था जीवन मूल्य,संस्कार और अपनी संस्कृति।।
बड़े बाबू जी जब भी आते थे,कुछ अलग सी साँकल बजाते थे।
आ गये हैं बाबूजी,सब के सब घर के जान जाते थे ।।
बहुयें अपने हाथ का,हर काम छोड़ देती थी।
उनके आने की आहट पा,आदर में घूँघट ओढ़ लेती थी।।
अब तो कॉलोनी के किसी भी घर में,किवाड़ रहे ही नहीं दो पल्ले के।
घर नहीं अब फ्लैट हैं,गेट हैं इक पल्ले के।।
खुलते हैं सिर्फ एक झटके से।पूरा घर दिखता बेखटके से।।
दो पल्ले के किवाड़ में,एक पल्ले की आड़ में,
घर की बेटी या नव वधु,किसी भी आगन्तुक को,
जो वो पूछता बता देती थीं।अपना चेहरा व शरीर छिपा लेती थीं।।
अब तो धड़ल्ले से खुलता है,एक पल्ले का किवाड़।
न कोई पर्दा न कोई आड़।।गंदी नजर ,बुरी नीयत, बुरे संस्कार,
सब एक साथ भीतर आते हैं फिर कभी बाहर नहीं जाते हैं।।
कितना बड़ा आ गया है बदलाव?अच्छे भाव का अभाव।
स्पष्ट दिखता है कुप्रभाव।।सब हुआ चुपचाप,
बिन किसी हल्ले गुल्ले के।बदल किये किवाड़,
हर घर के मुहल्ले के।।अब घरों में दो पल्ले के,
किवाड़ कोई नहीं लगवाता।एक पल्ली ही अब,
हर घर की शोभा है बढ़ाता।।अपनों में नहीं रहा वो अपनापन।
एकाकी सोच हर एक की है,एकाकी मन है व स्वार्थी जन।।
अपने आप में हर कोई,रहना चाहता है मस्त,
बिल्कुल ही इकलल्ला।
इसलिये ही हर घर के किवाड़ में,
दिखता है सिर्फ़ एक ही पल्ला!!

©पूर्वार्थ
  #दरवाजा