मुझे भी अपने दिल की बात कहने दो दो क्षण तो अपनी आँखों के सामने रहने दो कब से तड़प रही है नदी इस बाँध में खोल दो रास्ता अब इसे बहने दो कबतक बचाओगे इस जर्जर रिश्ते को खत्म करो, अब इस महल को ढहने दो बरसों बाद सागर से मोती निकले हैं आज इन आँखों से अश्कों को बहने दो तुम्हारी ज़ुबान कितनी काली पड़ गई है आख़िर कोई तो सच्च इसे कहने दो ज़रूरत नहीं मुझे किसी सहानुभूति की 'गुरविंदर' को ये दर्द अकेले सहने दो ©Gurvinder Matharu सहानुभूति #DesiPoet