प्यार में अक़्सर लोग झूठी कसमें खाते हैं। ख़ुदा जाने यह हुनर कैसे और कहाँ से लाते हैं। मिलते हैं वो अजनबियों से कुछ इस तरह गोया बरसों-बरस के पुराने कोई रिश्ते नाते हैं। वो क़दमों बिछाते रहे अक़्सर महकते से फूल और उन काग़ज़ के फूलों से हम धोखा खाते हैं। अब जाने भी दो यारों नहीं उखाड़नी है हमें वह जो वक़्त के सीने में दफ़न बरसों पुरानी बातें है। 🎀 Challenge-203 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। आप अपने अनुसार लिख सकते हैं। कोई शब्द सीमा नहीं है।