न जाने क्यूँ मैं शायर बना न जाने मैं क्यू शायरी लिखने लगा जिस के लिए थी उसने न पढ़ी जिसने पढ़ी उसके लिए थी नहीं रातों को उठता याद करता लफ्ज़ उसके दर्द वाले मैं तो अपने दिल मे भरता क्या कहूँ कैसे कहूं उससे मैं कितना प्यार करता ज़िक्र उसका हर जगह मैं ही मैं सिर्फ मैं ही करता प्यार उसको बेपन्हा करता Bas खोने से उसको मैं डरता जब कहीं जाता हूँ मैं याद उसकी साथ लेके मैं चलता