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विश्वास है कि टूटता ही नही, मैं हूं की सिमटता ही न

विश्वास है कि टूटता ही नही,
मैं हूं की सिमटता ही नही 

रेत और मिट्टी में फरक इतना सा बस
कोई अपने में समा लेगा , 
तो कोई कभी अपना होगा ही नही।

जिसको सब मान लूं वो मेरा है ही नही
जिसने सब माना था मुझे , 
उसका मैं रहा ही नहीं

दोनो प्यारे थे मुझको , एक आया नही ,
तो एक के पास मैं गया ही नही

©Niti Adhikari
  #असमंजस