शामियानों में कितनी रातें गुजर गई, बस गुजरता नहीं वो लम्हा क्यों, ये आईने सा मेरे सामने रहता है, ओझल नहीं होता तेरा चेहरा क्यों। सोया तो कल भी था मैं, पर नींद नहीं है इन आँखों मे क्यों, टूटे पत्तो की तरहा दिखते है, आज फिर बिखरे है मेरे सपने क्यों। हौसले आवाज देते है मुझको, पर जान नहीं तो ये जिस्म है क्यों, सांसे चल रही है अब भी मेरी, पर सीने में दिल नहीं है क्यों। मैं अब भी वही हु जहा थी जमीं, पर दिखती है बदली सी दुनिया ये क्यों, शायद रफ्तार दुनिया की भूल गया हूं मैं, पर चलसकु ऐसी जमीन भी दिखती नहीं है क्यों। हर मंजर हर लम्हे को आंखों में बसाकर रखा है, तेरे जिस्म की चादर में मैंने खुद को छुपा के रखा है, चाहते इतनी है तुझसे, के खुद को अंदर ही अंदर मिटा के रखा है, वफ़ा ऐ बेवफा के मौसम को मैंने मेरे दिल मे बसा के रखा है। ...✍🏻रूपेश थुल याद #nojot #true_love #rupesh_thool #brakeup #heart_brake #first_love