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मुक़द्दर भी सबको कैसी ख़ुदाई दे रहा हैं, सबको अपने

मुक़द्दर भी सबको कैसी ख़ुदाई दे रहा हैं,
सबको अपने सिवा कुछ दिखाई नहीं दे रहा हैं।

सब ज़रूर नफ़रतों के पौधे उगाएंगे,
धूप में भी पत्थरों को तराई दे रहा हैं।

गुनहगार नहीं तो फिर मामला क्या हैं,
वो आजकल ज़्यादा सफ़ाई दे रहा हैं।

दावा है लोकतंत्र का उत्सव आ गया,
शातिर भी ग़रीबों में मिठाई दे रहा हैं।

मुस्कान ओढ़कर वो निकला है मगर,
हसरतों का सुबकना सुनाई दे रहा हैं।

बीमार मर रहे हैं और बात है लेकिन,
वो सेहत शुदाओ को दवाई दे रहा हैं।

आंसू आंखों में क़ैद कर लिए हैं मगर,
वो ख़्वाबों को अपने रिहाई दे रहा हैं।

मैंने सिखाया था मुश्किल का सामना,
वो किसलिए फिर भी बुराई दे रहा हैं।

तुम मशवरा ना बांटों 'ज़फ़र' मुफ़्त में,
शहर में कौन आदमी भलाई दे रहा हैं।

©Ehssas #सबको अपने सिवा कुछ दिखाई नहीं दे रहा हैं।
मुक़द्दर भी सबको कैसी ख़ुदाई दे रहा हैं,
सबको अपने सिवा कुछ दिखाई नहीं दे रहा हैं।

सब ज़रूर नफ़रतों के पौधे उगाएंगे,
धूप में भी पत्थरों को तराई दे रहा हैं।

गुनहगार नहीं तो फिर मामला क्या हैं,
वो आजकल ज़्यादा सफ़ाई दे रहा हैं।

दावा है लोकतंत्र का उत्सव आ गया,
शातिर भी ग़रीबों में मिठाई दे रहा हैं।

मुस्कान ओढ़कर वो निकला है मगर,
हसरतों का सुबकना सुनाई दे रहा हैं।

बीमार मर रहे हैं और बात है लेकिन,
वो सेहत शुदाओ को दवाई दे रहा हैं।

आंसू आंखों में क़ैद कर लिए हैं मगर,
वो ख़्वाबों को अपने रिहाई दे रहा हैं।

मैंने सिखाया था मुश्किल का सामना,
वो किसलिए फिर भी बुराई दे रहा हैं।

तुम मशवरा ना बांटों 'ज़फ़र' मुफ़्त में,
शहर में कौन आदमी भलाई दे रहा हैं।

©Ehssas #सबको अपने सिवा कुछ दिखाई नहीं दे रहा हैं।