मैं राही हूँ उस पथ का जिस पथ में कांटे खूब हैं पथ प्रशस्त ,अपूर्ण-पूर्ण होगा राही हूँ,आशावादी हूँ ,विश्वाश बखूब है ``मोहित सिंह पथ का रही हूँ..