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प्रेम की जोति कोई पानं को प्रेम कहत है , कोई च

प्रेम की जोति 

कोई  पानं को प्रेम कहत है ,
कोई  चाहन को प्रेम  कहत  हैं,
कोई  पुजन को प्रेम मंत हैं|


कहुँ प्रेम  के  मूर्त  पूजत हैं,
कहुँ आस्था आस्था में प्रेम ढ़ूंढ़त हैं,
कहुँ निराशा को प्रेम से जोरत हैं|

फेर काहे प्रेम की निंदा होवत  हैं,

फेर काहे प्रेम को गाली मिलत हैं|

        .....कवि सोनू प्रेम की ज्योति
प्रेम की जोति 

कोई  पानं को प्रेम कहत है ,
कोई  चाहन को प्रेम  कहत  हैं,
कोई  पुजन को प्रेम मंत हैं|


कहुँ प्रेम  के  मूर्त  पूजत हैं,
कहुँ आस्था आस्था में प्रेम ढ़ूंढ़त हैं,
कहुँ निराशा को प्रेम से जोरत हैं|

फेर काहे प्रेम की निंदा होवत  हैं,

फेर काहे प्रेम को गाली मिलत हैं|

        .....कवि सोनू प्रेम की ज्योति