प्रेम की जोति कोई पानं को प्रेम कहत है , कोई चाहन को प्रेम कहत हैं, कोई पुजन को प्रेम मंत हैं| कहुँ प्रेम के मूर्त पूजत हैं, कहुँ आस्था आस्था में प्रेम ढ़ूंढ़त हैं, कहुँ निराशा को प्रेम से जोरत हैं| फेर काहे प्रेम की निंदा होवत हैं, फेर काहे प्रेम को गाली मिलत हैं| .....कवि सोनू प्रेम की ज्योति