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हे पार्थ क्यूँ अधीर हो... तुम युद्ध मे प्रवीण हो..

हे पार्थ क्यूँ अधीर हो...
तुम युद्ध मे प्रवीण हो...
हृदय गति को थाम लो.. 
ना कर्म से विराम लो .. 
अधर्म को ना मोल दो.. 
उठा धनुष ये बोल दो.. 
मैं जीत मैं ही हार हूं... 
मैं न्याय की पुकार हूं।।। 1।।
प्रत्यक्ष सब प्रमाण है 
विपक्ष अति महान है। 
हैं वीर सब बड़े बड़े.... 
समक्ष युद्ध को खड़े.. 
पर ध्येय मे प्रथक है वे
हाँ भ्रात कुल शतक है वे 
पुष्प की दशा मे अनिष्ट है वे शूल है 
जो है घनिष्ट रक्त से स्वभाव मे वे क्रूर है। 
वे पुत्र वध के पाप है 
वे नारी का प्रलाप है 
वे सब नियति के श्राप है.. 
अधर्म के अलाप है.. 
फिर क्यूँ ना आज साथ उन को काल का ही प्राप्त हो 
हे सखे तुम पांच ही परिणाम को पर्याप्त हो.. 
द्वापर की इस अनीति का यही सफल निदान है .. 
ना हो तनिक अचेत शंभू को तेरा संज्ञान है। 
मै द्वंद अंत तक तेरे इस रथ पर सवार हूं। 
हे पार्थ मैं ही युद्ध का आरम्भ औ परिणाम हूं।। 2।।
सखा समय समीप है..
सुनो क्या युद्ध नीति है.
अभिमन्यु का अब बोध लो ... 
पांचाली का प्रतिशोध लो..
 देवदत्त की गुहार दो.. 
फिर शत्रु को निहार लो ..
जो हैं शिथिल पड़ी हुई... 
भुजाओं को प्रसार दो .. 
कमान मे मचल रहे .. 
उन बाणों को प्रहार दो। 
ना हो दया ना मोह तीर ...
धड़ के आर पार हो... 
मैं जन्म से इस द्वंद का आरम्भ औ परिणाम हूं... 
हे सखे मैं कृष्ण मैं ही न्याय का विधान हूं।। 3।।

©Shivam Pandey #KavyanjaliAntaragni21
#KavyanjaliAntaragni21
हे पार्थ क्यूँ अधीर हो...
तुम युद्ध मे प्रवीण हो...
हृदय गति को थाम लो.. 
ना कर्म से विराम लो .. 
अधर्म को ना मोल दो.. 
उठा धनुष ये बोल दो.. 
मैं जीत मैं ही हार हूं... 
मैं न्याय की पुकार हूं।।। 1।।
प्रत्यक्ष सब प्रमाण है 
विपक्ष अति महान है। 
हैं वीर सब बड़े बड़े.... 
समक्ष युद्ध को खड़े.. 
पर ध्येय मे प्रथक है वे
हाँ भ्रात कुल शतक है वे 
पुष्प की दशा मे अनिष्ट है वे शूल है 
जो है घनिष्ट रक्त से स्वभाव मे वे क्रूर है। 
वे पुत्र वध के पाप है 
वे नारी का प्रलाप है 
वे सब नियति के श्राप है.. 
अधर्म के अलाप है.. 
फिर क्यूँ ना आज साथ उन को काल का ही प्राप्त हो 
हे सखे तुम पांच ही परिणाम को पर्याप्त हो.. 
द्वापर की इस अनीति का यही सफल निदान है .. 
ना हो तनिक अचेत शंभू को तेरा संज्ञान है। 
मै द्वंद अंत तक तेरे इस रथ पर सवार हूं। 
हे पार्थ मैं ही युद्ध का आरम्भ औ परिणाम हूं।। 2।।
सखा समय समीप है..
सुनो क्या युद्ध नीति है.
अभिमन्यु का अब बोध लो ... 
पांचाली का प्रतिशोध लो..
 देवदत्त की गुहार दो.. 
फिर शत्रु को निहार लो ..
जो हैं शिथिल पड़ी हुई... 
भुजाओं को प्रसार दो .. 
कमान मे मचल रहे .. 
उन बाणों को प्रहार दो। 
ना हो दया ना मोह तीर ...
धड़ के आर पार हो... 
मैं जन्म से इस द्वंद का आरम्भ औ परिणाम हूं... 
हे सखे मैं कृष्ण मैं ही न्याय का विधान हूं।। 3।।

©Shivam Pandey #KavyanjaliAntaragni21
#KavyanjaliAntaragni21