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समेट लेता मुकम्मल दर्द मैं जिसमें काश मैं ऐसी इबार

समेट लेता मुकम्मल दर्द मैं जिसमें काश मैं ऐसी इबारत लिख पाता

 सुना है लफ्जों में सिफत होती है बेशुमार गम को छुपाने के लिए

©Aurangzeb Khan
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