बन के सिंदूर मांग में तेरे बन के सिंदूर मांग में तेरे जनम जनम सजता रहूँ बन घूंगरू पायल के तेरे पांवों में बजता रहूँ।। कभी कमरधन कभी कर्णफूल कभी गले का हार बनूँ बारी बारी करके तेरा सोलह मैं श्रृंगार बनूँ बन के कंगन हाथ में तेरे खनन खनन बजता रहूँ बन के सिंदूर मांग में तेरे जनम जनम सजता रहूँ एक बेर बाजूबंद,मूंदडी शिशफूल की आशा है बन जाऊं मैं नथ बेसरि अंतर की अभिलाषा है बन के मेहंदी तरहथ तेरे हर दिन मैं रचता रहूँ बन के सिंदूर मांग में तेरे जनम जनम सजता रहूँ कवि:- अमित प्रेमशंकर एदला,सिमरिया,चतरा(झारखण्ड) ©Amit premshanker #बन_के_सिंदूर_मांग_में_तेरे #ban_ke_sindur_mang_me_tere #amitpremshanker #अमितप्रेमशंकर #WallTexture