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मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो शहर के

मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो
शहर के शहर को मेरा वाक़िफ़-ए-हाल 
कर दिया,

मुद्दतों बाद उस ने आज मुझ से कोई 
गिला किया
मंसब-ए-दिलबरी पे क्या मुझ को बहाल
 कर दिया...


-Parween Shakir

©Srijit Srivastava #Parween_shakir
मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो
शहर के शहर को मेरा वाक़िफ़-ए-हाल 
कर दिया,

मुद्दतों बाद उस ने आज मुझ से कोई 
गिला किया
मंसब-ए-दिलबरी पे क्या मुझ को बहाल
 कर दिया...


-Parween Shakir

©Srijit Srivastava #Parween_shakir