-----राही----- चल रहा है राही, शहर-शहर और गाँव-गाँव। मंजिल उसकी अपनी है, अपना है ठहराव।। चलता है थकता है, रूकता है फिर चलता है, कर लेता आराम दो पल का, मिल जाती जहाँ छाव, चल रहा है राही, शहर-शहर और गाँव-गाँव। मंजिल उसकी अपनी है, अपना है ठहराव।। कभी कच्ची सड़कें चलता है, कभी पक्की सड़कें चलता है, गिरता है उठता है, लड़खड़ता है संभलता है, हो चाहे जैसे हालात, साथ न छोड़े पाँव, चल रहा है राही, शहर-शहर और गाँव-गाँव। मंजिल उसकी अपनी है, अपना है ठहराव।। कभी नदियाँ मिलती कभी सागर मिलते, झील ताल महासागर मिलते, कभी तैर कर करते पार, कभी मिल जाती नाँव, चल रहा है राही, शहर-शहर और गाँव-गाँव। मंजिल उसकी अपनी है, अपना है ठहराव।। @कृष्ण