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और लड़ना है तुम्हें?...नहीं लड़ लो तुम, कहता हूं क

और लड़ना है तुम्हें?...नहीं लड़ लो तुम,
कहता हूं कि...
नए कोपलों सी मेरे चेहरे पर आती मुस्कान हो,
पतझड़ जैसे अनबन के बाद,
नए सुबह की लाली सी खूबसूरत विहान हो,
पेड़ों के पतझड़ मानो हमारे अनबन,
उनका बढ़ना,पुष्पित होना,हवाओं से मस्ती,
तूफानों को संभालना सब जड़ पर ही तो है;
नहीं महसूस होता है तुम्हें?...मेरी जड़ हो तुम।.

©Chhaya Ved
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chhayaved2478

Chhaya Ved

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