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जय हो सुनसान होते आसमां में एक नई ललकार हो, ग़मों


जय हो

सुनसान होते आसमां में एक नई ललकार हो,
ग़मों के साए को काटती एक तेज़ तलवार हो,
उम्मीदों का झंडा अब न कहीं झुके कभी,
गुमनामी का फंदा अब न कहीं कसे कभी,
उगते सूरज से प्रतापी तुम नए फनकार हो,
निरंतर बहती विशाल नदी-सी ताबड़तोड़ झंकार हो,
उगता चढता लड़ता बढता काफिला ना रुके कभी,
बाण-सा प्रतन्यचा चढता सिलसिला ना डिगे कभी,
इन्द्रधनुषी रंगों-से बिखरे एक उम्दा कलाकार हो,
भीषण होते ताप में द्वन्द्व के लिए तैयार हो,
अपने दम पर खड़ी निर्विरोध चुनी स्वायत्त सरकार हो,
चट्टान में भी कर दे छेद ऐसा पैना हथियार हो,
प्रकृति में विद्यमान भरपूर ऊर्जा मिले सभी,
वसंत के मौसम जैसी नई कोंपल खिले तभी,
लाखों में लाखों मुश्किलों से निपटे तुम धनंजय हो,
चाहे छोटी ही हो लेकिन केवल तुम्हारी ही जय हो |

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