गॉव की सुनी सड़कों पर अब कोई हलचल नही सब शहरों में जा बसे हैं ,दिखता कोई मंचल नही लटक रहे हैं दरवाज़ों पर बड़े बड़े से ताले अब करते हैं ये अब पहरेदारी ,घर से आती कोई शोर नही सबको लत लगी हुई हैं शहरों में अब बसने की गॉव को खाली कर रहे हैं ,रुकने का कोई नाम नही मिटा रहे हैं नाम सभी पाएं थे पुरखों से जो शहरों में हर लत की जद में,खो रहे हैं नाम सभी अपने मन से जीने ख़ातिर गॉव घुटन सी हो रही है इसीलिए गॉवो से अब,भाग रहे हैं शहरों को सभी ।। गॉव