कुछ ख़्वाब टूटे, कुछ ख़्वाब छुटे कहानी कई हैं, बताऊं किस बूते ये दुनिया अब काटे, किनारे को छांटे मै खुद में हूं सिमटा और मंजिल भी डांटे चले हो फतह करने, सिकंदर के जैसे कमर टेक बैठे, विपाशा के आगे चलो अब खड़े हो, कलम के सहारे कलम के सिपाही, क्यूं! हिम्मत हो हारे ये डर कैसा, है जो तुम्हे लग गया गर आंधी धारा पे, गगन छू के आ ये बातें भी सुन, जो तुम्हारे गढ़े अभी मंजिल आगे, इधर क्यों खड़े मै फिर से हंसा, और आंसु छिपा कुछ शब्द हैं गढ़े और फिर से लिखा कई रास्ते पे हैं, पत्थर बिछे क्या हस्ती है, अब वे गिरा दे मुझे जो अबकी गिरा तो फिर ऐसे उठूं तुम मानो, मैं शिव का पताका विजय ©Sanu Pandey #alone Vipasha-Beas River #emptiness #Sanupoetry