उन्मादों के संवाद बहे अश्कों से अधरों ने चुप रहना सीख लिया शब्दों के आलिंगन को दृग ने फिर एकांत का वास दिया हिय के अंदर के तीक्ष्ण प्रहार ज्वालामुखी समान स्फुटित हुए अंतर्मन के जज़्बात लड़े मल्ययुध से हुए आगाज फिर अंधकार डूबा प्रकाश फिर सांझ ढली और देर रात आहट बिना फिर तूफानों को कर में अपने ही सोंख लिया फिर खुद में ही खुद से बातों का दौर हुआ कुछ बिषरी दबी हुई और कुंठित यादों पर सहसा पड़ा प्रकाश स्पष्ट हुए दुर्दिन के काल सब कर्म करण और आचार कब कैसा अत्याचार हुआ किन किन को छी§न लिया क्या क्या नहीं दिखलाया थे अपने सब जिनसे बैर किया लोभ विवश सब खुद से ही नाश किया फिर काल दृष्टि पलटा समय और कर्मा ने आगाज किया जैसा जैसा कर रक्खा था वैसा ही खुद के साथ हुआ एक एक कर सब छूटे फिर दाने को भी मोहताज हुआ...। ©Shivam Verma #जज़्बात