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मैं दर्द हूँ, तकलीफ हूँ, हर जिस्म पे सवार हूँ। ज़

मैं दर्द हूँ, तकलीफ हूँ, हर जिस्म पे सवार हूँ। 
ज़ुल्म,ज़्यादती,ज़ख़्मों की कराह चीख़ पुकार हूँ। 
तारीख़ मेरी भी हर दौर में अज़ीमतरीन है,
अज़ीमतरीन में भीे अज़ीमुश्शान वाक्या-हुसैन है।
तड़प उठी थी रेत भीे तलवार के चाक से,
दरिया का सीना चिर गया मंज़रे-दर्दनाक से।
दहशत के शोले धूप में मिले घुले-घुले, 
हवा तो जैसे रुक गई नेज़ों की नोंक पे।
अर्श भी डरा-डरा, फर्श भीे सहम-सहम,
क़ायनात कैद थी, ज़ुल्मी विसात से।
ऐ हक़! तुम्हारा परचम फिर भी बुलंद था, 
नवाशा ऐ रसूल(सल्ल.) जो चाक-चौबंद था।
झुकते थे सर ख़ौफ़ की मुर्दा नमाज़ में, 
ज़िंदा कर गया नमाज़ को वो सर हुसैन का। 
मैंने भी हॅस कर कह गया- सुन ले,ऐ यजीद!
मैं आज जिस सीने में हूँ वो है सीना हुसैन का। 
माँगी दुआ मैंने- ऐ अल्लाह!ऐ मेरे रब,,,,
हर दौर में ज़िंदा रखना तू सीना हुसैन का। ।। मुहर्रम
मैं दर्द हूँ, तकलीफ हूँ, हर जिस्म पे सवार हूँ। 
ज़ुल्म,ज़्यादती,ज़ख़्मों की कराह चीख़ पुकार हूँ। 
तारीख़ मेरी भी हर दौर में अज़ीमतरीन है,
अज़ीमतरीन में भीे अज़ीमुश्शान वाक्या-हुसैन है।
तड़प उठी थी रेत भीे तलवार के चाक से,
दरिया का सीना चिर गया मंज़रे-दर्दनाक से।
दहशत के शोले धूप में मिले घुले-घुले, 
हवा तो जैसे रुक गई नेज़ों की नोंक पे।
अर्श भी डरा-डरा, फर्श भीे सहम-सहम,
क़ायनात कैद थी, ज़ुल्मी विसात से।
ऐ हक़! तुम्हारा परचम फिर भी बुलंद था, 
नवाशा ऐ रसूल(सल्ल.) जो चाक-चौबंद था।
झुकते थे सर ख़ौफ़ की मुर्दा नमाज़ में, 
ज़िंदा कर गया नमाज़ को वो सर हुसैन का। 
मैंने भी हॅस कर कह गया- सुन ले,ऐ यजीद!
मैं आज जिस सीने में हूँ वो है सीना हुसैन का। 
माँगी दुआ मैंने- ऐ अल्लाह!ऐ मेरे रब,,,,
हर दौर में ज़िंदा रखना तू सीना हुसैन का। ।। मुहर्रम
sabirkhan6909

Sabir Khan

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