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पर्वत का सीना चीर कर अवतरित हों दुर्गम रास्तों से

पर्वत का सीना चीर कर अवतरित हों
दुर्गम रास्तों से प्रवाहित होना
सदा बहते रहना मेरा चरित्र है
अच्छे बुरे का भेद भुलाकर
सबकी प्यास बुझाना मेरी आदत
कोई मुझे माँ कह के पुकारता है
कोई करता है अपनी प्रेयसी से तुलना 
कुछ करते हैं मुझे मलीन
कुछ चाहते हैं मरकर मुझमें घुलना
पर मैं नदी हूँ और मेरा उद्देश्य है
बस अपने सागर से मिलना 
©अनु उर्मिल"सर्वदा आशावादी" #नदी
पर्वत का सीना चीर कर अवतरित हों
दुर्गम रास्तों से प्रवाहित होना
सदा बहते रहना मेरा चरित्र है
अच्छे बुरे का भेद भुलाकर
सबकी प्यास बुझाना मेरी आदत
कोई मुझे माँ कह के पुकारता है
कोई करता है अपनी प्रेयसी से तुलना 
कुछ करते हैं मुझे मलीन
कुछ चाहते हैं मरकर मुझमें घुलना
पर मैं नदी हूँ और मेरा उद्देश्य है
बस अपने सागर से मिलना 
©अनु उर्मिल"सर्वदा आशावादी" #नदी