कैसी ये प्यास है किसकी तलाश है? कभी न खत्म होने वाली ये तलाश, अन्तश् के किसी कौने में सिमटी हुई , असीमित दर्दीली चुभन, आकार इस अनन्त फैले मरुस्थल की तरह, न मिटती है न थकती है ना ही विस्मृति की ओर ले जाती है , बता नहीं सकता ये मन , वह उस तड़प से हृदय के चित्कार पर विराम नहीं सह सकता वह तलाश ,वह दर्द ,वह अतृप्त प्यास तपती रेत में , एक पग को सौ - सौ पगों से नापते हुए एक बीतराग अपने ही उस अनमोल रत्न को तलाश करने निकला इस विशाल फैली मरु भूमि में , थरथराते पग धराता , तलाशता उसे , जिसे कस्तूरी की तरह उर में बसा के रखा है जानते हो क्यूं , क्योंकि उसने इस जर्जर मरुस्थल को , दो बूंद अमृत पिलायी थी , फिर से उस अमृत की चाह में मेरी विदीर्ण काया भटक रही है कभी न खत्म होने वाली तलाश में । ये मेरी असीमित अतृप्त प्यास कभी न मिलने वाले हिरण की तलाश ।। अतृप्ता की तलाश