|| श्री हरि: ||
75 - करुणा
'कनूं, तुझे किसने मारा है?' सुकुमार कन्हाई की पीठ पर कटिदेश में एक नन्हीं-सी खरोंच आ गयी है। रक्त आया नहीं है किंतु छलछला आया-सा लगता है। नन्हीं खरोंच-किंतु श्याम कितना सुकूमार है। दाऊ के कमल-दल के समान सहज अरुण नेत्र सर्वथा किंशुकारुण हो उठे हैं और उनमें जल भर आया है। भ्रूमण्डल कठोर हो गये हैं और मुख तमतमा आया है। उसके रहते कोई उसके भाई की ओर अंगुली उठा सकता है। कौन है वह?
'कहां ?मुझे किसने मारा?' श्याम को पता ही नहीं कि उसे खरोंच भी आयी।
'यह क्या है?' दाऊ के नेत्र तो वहीं स्थिर हो गये हैं। #Books