मंजर मंजर तुमको गाया फिर खुद से अंजान हुये । तुमको खोकर जले हैं ऐसे तन मन सब शमशान हुये ।। तुम बिन ये एकाकी जीवन मौत की एक इकाई है । जनम जनम का बंधन है ये या जन्मों जन्मों की खाई है । धड़कन सान्सें तुझको पुकारें और हम तेरे नाम हुये । तुमको खोकर जले हैं ऐसे तन मन सब शमशान हुये ।। तेरी दुनियां बसाकर मन ये मीरा सा बैरागी है । तुझमें खोकर, तुझसा होकर मन खुद से ही बागी है । मिलन को हम राधा सा रोए विरह में हम भी श्याम हुये । तुमको खोकर जले हैं ऐसे तन मन सब शमशान हुये ।। मेरे गीतों में जीवित वो अपनी प्रेम कहानी है । जिसमें मैं सागर सा बेबस और तू दरिया सी दीवानी है । तुम लफ्ज़ो से अमर हुई हो और हम गाकर बदनाम हुये । तुमको खोकर जले हैं ऐसे तन मन सब शमशान हुये ।। ©DIPRAJ #dipraj