होली आकर गुजर भी जाती है, और सुबह से रात चारदीवारी में कट जाती है पहले एक जमाना था जब रंगो में डूबे होकर भी, रंगो से बचने को छिपते थे और अब सामने गाल भी बढ़ा दे, तो गाल बेरंग ही रह जाते है पहले अपनों में भी अपनों को ढूंढते थे, खास गुलाल के लिए और अब तो जिन्हें अपना बोल रंग लगा दे वो बहाना ढूंढते है हम सच में बहुत बड़े हो गए है हम। पुआ - पकवान जिसे ना पूछते थे हम, अब तो लगता है बिसरी कहानी के कलाकार हो गए है एक जमाना था जब एक होली घर से दूर फिल्मी बनाना था और अब अरसा हो गया है, तब से घर की होली को तड़पता ये दिल सच में बहुत बड़े हो गए है हम। दो भांग की गोली मिल जाती ठंडाई में, चार दोस्त मिल जाते होली की शाम में यही अधूरी ख्वाहिश थी, जो पूरी करनी थी आने वाले जवानी के साल में और देखो भांग तो मिल भी गई, पर नशा चढ़ाने वाले यार ही नहीं सच में बहुत बड़े हो गए है हम। बुरा ना मानो होली है, कहकर सब पर रंग चढ़ाना था छोटे से घर में नहीं, बड़े मैदान में रंग जमाना था और देखो हर होली में दिल बुरा मान, कमरे में कैद है सच में बहुत बड़े हो गए है हम। थोड़ी बचपना फिर से ले आऊ वो, जिंदगी से अलग खुशी कि दौड़ पिचकारी संग लगाऊ अब ये ख्वाहिश फिर से जागती है, की अपनों को गुलाल फिर से लगाउ अब पर फिर से खुद के ख्वाहिश को समेत, सिमट जाते है हम हां सच में बहुत बड़े हो गए है हम। #holi #hapoyholi #gharsedoor #hindi