स्वमं राह देगी नदी पर्वत भी गूँज कर हिल जाएगा बेड़ियों का घमंड भी पल में पिघल-पिघल जाएगा एक स्वांस भर का बल अगर प्रबल करदूँ मुझमे मैं तो आज चाह लूँ मैं जो कुछ वो मुझे मिल जाएगा #muktak