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ऐ दर्द! तुझसे ज़्यादा तो यह उम्मीदें तोड़ती हैं अ

ऐ दर्द! तुझसे ज़्यादा तो  यह उम्मीदें तोड़ती हैं अक़्सर, 
तेरे इस बिछाये बिछौने पर यादें सोया करती हैं अक़्सर।

थक गई हूँ मैं दिल को समझा समझा कर, मानता नहीं, 
तेरे इस झूठे से याराने पर राहतें रूठा करती हैं अक़्सर।

तू आख़िर बाज़ क्यों नहीं आता, इतना तोड़कर भी मुझे? 
तेरे इस ज़रा से सुकूँ पर साँसें सिसका करती हैं अक़्सर।  🎀 Challenge-270 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 63 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।
ऐ दर्द! तुझसे ज़्यादा तो  यह उम्मीदें तोड़ती हैं अक़्सर, 
तेरे इस बिछाये बिछौने पर यादें सोया करती हैं अक़्सर।

थक गई हूँ मैं दिल को समझा समझा कर, मानता नहीं, 
तेरे इस झूठे से याराने पर राहतें रूठा करती हैं अक़्सर।

तू आख़िर बाज़ क्यों नहीं आता, इतना तोड़कर भी मुझे? 
तेरे इस ज़रा से सुकूँ पर साँसें सिसका करती हैं अक़्सर।  🎀 Challenge-270 #collabwithकोराकाग़ज़

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