समाचार-पत्र थे। रेडियो था। अपनी-अपनी मर्यादाएं- अपना-अपना गौरव। इनका एक अन्य दायित्व भी था सामाजिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में सामाजिक शिक्षण। चिन्तनशील, उत्तरदायी, बोधपूर्ण व्यक्तित्व के निर्माण में श्रेष्ठ शुद्ध भाषा के साथ अपनी भूमिका निभाना। हमारा दर्शन शरीर के माध्यम से आत्मा तक पहुंचाने की सीख देता था। Good evening ji 💕🍨💕🐒☕☕☕☕☕☕☕☕☕💕🍓🍨🍉🍉🍹🍹🍹🍫🍫🍸 : इंटरनेट किसी भी बहाने खुले, अधिकांश युवा अकेले होते ही या तो अश्लील चित्रों तक पहुंच जाते हैं या फिर किसी प्रेम प्रसंग में व्यस्त हो जाते हैं। समय के साथ मीडिया भी सारी लाज-शर्म छोड़नेे पर उतारू होने लगा है। इतना ही नहीं समाचार पत्रों का कलेवर भी टी.वी. और इंटरनेट से स्पर्घा करने लगा है। आज सम्पूर्ण मीडिया मनोरंजन के शिकंजे में पहुंच गया। सम्पूर्ण युवा पीढ़ी को मनोरंजन तथा शरीर सुख के आवरण ने ढंक लिया, ऎसा प्रतीत होने लगा है। गृहस्थाश्रम तक के पचास वर्षो में मनोरंजन का स्थान ही नहीं है। जीवन का लक्ष्य चूंकि मोक्ष रहा है, अत: व्यक्ति तो इन्द्रिय निग्रह का अभ्यास करता था। आज तो मीडिया तथा सूचना तंत्र का भेद ही समाप्त हो गया। सोशल साइट्स भी मीडिया की भूमिका निभाने लगी हैं। सच्चाई की कोई गारंटी नहीं। व्यक्ति की जानकारी का प्रश्न ही नहीं उठता। शादियां कराने का माध्यम बन गए और विवाह-विच्छेद को साधारण घटना बना दिया। व्यक्ति और समाज के प्रति संवेदना और उत्तरदायित्व का बोध, दोनों ही खो गए। उनका स्थान व्यापार ने ले लिया। जिस प्रकार शिक्षा कॅरियर-धन प्रधान हो गई, उसी प्रकार मीडिया भी धन पर जाकर ठहर गया। लक्ष्मी का उल्लू तो अंधेरे में ही उड़ सकता है। इंटरनेट की नकल टी.वी ने शुरू की और टी.वी. के पद चिन्हों पर प्रिंट मीडिया ने कदम बढ़ा दिया। :