दिन देखें ऐ जमाने तेरे संग देखें,कभी हँसाता है तो कभी जलाता है पानी का दामन तो साफ था,फिर भी कई घिनौने उसमें रंग देखें। उजला-उजला दिखता है सूरज, निशा मे क्यों छिप जाता है शीतल-शीतल पवन के झोंके, कभी गाढा धूँआ फिर क्यों हमकों खाता है। नग्न पैरों से, धरा तेरा आभास मैं पाता हूँ कभी मखमल तो कभी, नुकीले काँटों से कई गहरे घाँव मे खाता हूँ. ऐ जमाने................(सूरज अशोक जरूरी नहीं की हमहीं गलत हो..