अच्छे दिन की आस लगाकर बैठे हैं। बेकारी में फिर झुंझला कर बैठे हैं। वही प्रशंसक जिन्हे मिला कुछ सत्ता से, जो वंचित हैं गाल फुलाकर बैठे हैं। नेता जी का हर बंजर पर कब्जा है, दीन दुःखी का कौन भला कर बैठे हैं। सत्ता के अभिमान में इतना चूर हुए, सही गलत हर बात भुलाकर बैठे हैं। खून चूसती महंगाई में क्लांत कृषक, अस्थि पंजर देह जला कर बैठे हैं। #मौर्यवंशी_मनीष_मन #गीतिका_मन #ग़ज़ल_मन #सत्ता #किसान #निर्धनता