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एक जाड़े की सुबह जलेबी के ठेले पर, सबकी बातें और सा

एक जाड़े की सुबह जलेबी के ठेले पर,
सबकी बातें और साँसे ठिठुर रहीं थी ।

और कोने में दो आँखें, सपनों का स्वेटर बुन रहीं थी ।। #Triveni #त्रिवेणी चुनौती का जवाब Saket भाई को ! आपने इस चुनौती के ज़रिये कुछ स्याह यादें ताज़ा की । आशा है मैं थोड़ा न्याय कर पाया पर आगे लिखने से खुद को रोक भी नहीं पाया । नीचे की पंक्तियाँ इसी छोटे से वाकये पर आधारित हैं ।

वो सुबह भी गंभीर थी,
लोगो की भूख अधीर थी ।
कलछी से मचकती जलेबियाँ,
कढ़ाई से छन के उतर रहीं थी ।।
सुबह सुबह ये जमावड़ा किसी को न सुहाता था,
और उसका दिन वो स्वेटर बुनने में निकल जाता था ।।
एक जाड़े की सुबह जलेबी के ठेले पर,
सबकी बातें और साँसे ठिठुर रहीं थी ।

और कोने में दो आँखें, सपनों का स्वेटर बुन रहीं थी ।। #Triveni #त्रिवेणी चुनौती का जवाब Saket भाई को ! आपने इस चुनौती के ज़रिये कुछ स्याह यादें ताज़ा की । आशा है मैं थोड़ा न्याय कर पाया पर आगे लिखने से खुद को रोक भी नहीं पाया । नीचे की पंक्तियाँ इसी छोटे से वाकये पर आधारित हैं ।

वो सुबह भी गंभीर थी,
लोगो की भूख अधीर थी ।
कलछी से मचकती जलेबियाँ,
कढ़ाई से छन के उतर रहीं थी ।।
सुबह सुबह ये जमावड़ा किसी को न सुहाता था,
और उसका दिन वो स्वेटर बुनने में निकल जाता था ।।
calmkazi6439

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