एक जाड़े की सुबह जलेबी के ठेले पर, सबकी बातें और साँसे ठिठुर रहीं थी । और कोने में दो आँखें, सपनों का स्वेटर बुन रहीं थी ।। #Triveni #त्रिवेणी चुनौती का जवाब Saket भाई को ! आपने इस चुनौती के ज़रिये कुछ स्याह यादें ताज़ा की । आशा है मैं थोड़ा न्याय कर पाया पर आगे लिखने से खुद को रोक भी नहीं पाया । नीचे की पंक्तियाँ इसी छोटे से वाकये पर आधारित हैं । वो सुबह भी गंभीर थी, लोगो की भूख अधीर थी । कलछी से मचकती जलेबियाँ, कढ़ाई से छन के उतर रहीं थी ।। सुबह सुबह ये जमावड़ा किसी को न सुहाता था, और उसका दिन वो स्वेटर बुनने में निकल जाता था ।।